वोटों के रुझान पर अटकलों का दौर शुरू
मणिकांत ठाकुर, manikant thakur, byline
मणिकांत ठाकुर
बीबीसी संवाददाता, पटना
मणिकांत ठाकुर, manikant thakur, byline
बिहार में विधानसभा की कुल 243 सीटों के लिए छह चरणों में कराए जा रहे मतदान का चौथा चरण समाप्त होते ही यहाँ सत्ता-संभावना पर कयास लगाने वालों की बहस-गोष्ठियां चालू हो गई हैं.
अब चूँकि 182 सीटों के लिए वोट डाले जा चुके हैं और केवल 61 सीटों का मतदान बाक़ी है इसलिए विभिन्न राजनीतिक दलों ने भी अपनी-अपनी स्थिति का आकलन शुरू कर दिया है.
जो प्रमुख दल या गठबंधन इस चुनाव की मुख्यधारा में हैं, उनमें से जनता दल यूनाइटेड और भारतीय जाता पार्टी (जदयू-भाजपा) गठबंधन राज्य में अपनी मौजूदा सत्ता बरक़रार रखने जैसा 'फीड बैक' लेने में व्यस्त है.
राष्ट्रीय जनता दल और लोक जनशक्ति पार्टी (राजद-लोजपा) गठबंधन ऐसी सूचनाएँ बटोरने में जुटा है कि यहाँ सत्ता परिवर्तन कराने लायक सीटें उसके खाते में आ रही हैं या नहीं.
उधर कांग्रेस ये रिपोर्ट लेने में जुट गई है कि सबसे वजनदार प्रचार-मुहिम चलाने का फ़ायदा उसे कितना मिल रहा है और कम-से कम तीसरा स्थान भी वो ले पाएगी या नहीं.
हरेक के दावे
2005 के विधानसभा चुनाव जैसा समर्थन यहाँ के सत्ताधारी गठबंधन को नहीं मिल रहा है, इसकी झलक बीते चार चरणों के मतदान में मिल चुकी है. लेकिन मुख्य विपक्षी राजद-लोजपा के इस दावे में भी दम नहीं लगता है कि वो उभरकर आ रहा है.
समाजशास्त्री सचींद्र नारायण
वैसे, यहाँ सत्ता के दौर में शामिल इन तीनों में से हरेक पक्ष अपने औपचारिक ऐलान में दावा कर रहा हैं कि बीते चार चरणों का मतदान उसी को बहुमत की तरफ ले जा रहा है.
लेकिन जो तटस्थ प्रेक्षक हैं, उनके तर्क किन्हीं को स्पष्ट बहुमत की तरफ ले जाने जैसे रुझान की पुष्टि नहीं करते हैं.
उनका मानना है कि एक तरफ राजद और कांग्रेस के बीच मुस्लिम मत विभाजन और दूसरी तरफ भाजपा और कांग्रेस के बीच सवर्ण मतों का बंटवारा हुआ है.
समाजशास्त्री डॉक्टर सचींद्र नारायण कहते है, ''2005 के विधानसभा चुनाव जैसा समर्थन यहाँ के सत्ताधारी गठबंधन को नहीं मिल रहा है, इसकी झलक बीते चार चरणों के मतदान में मिल चुकी है. लेकिन मुख्य विपक्षी राजद-लोजपा के इस दावे में भी दम नहीं लगता है कि वो उभरकर आ रहा है.''
एक तरफ सत्ताधारी जदयू-भाजपा गठबंधन के लिए 'महादलित' और अति पिछड़ी जातियों में तो दूसरी तरफ विपक्षी राजद-लोजपा गठबंधन के लिए यादव और पासवान समाज में मुखर समर्थन सबसे साफ़ दिखा है.
जातीय रुझान
इस बार तस्वीर अब तक बहुत साफ़ नहीं हुई है क्योंकि चुनाव का पहले जैसा कोई पैटर्न सेट नहीं हो सका. फिर भी इतना तो कहा जा सकता है कि पलड़ा बहुत नहीं तो थोड़ा जदयू लोजपा का ही अभी झुका दिखता है.
प्रोफेसर विनय कंठ
इसे जातीय-रुझान पर आधारित अनुमान बताने वाले विश्लेषक राज्य में विकास के प्रचार को सही या ग़लत मानने वाले मतदाताओं के दो अलग-अलग वर्गों की अनदेखी जैसा आकलन मानते हैं.
प्रोफेसर विनय कंठ का कहना है, ''इस बार तस्वीर अब तक बहुत साफ़ नहीं हुई है क्योंकि चुनाव का पहले जैसा कोई पैटर्न सेट नहीं हो सका. उम्मीदवारों में से अधिकांश इस बार बहुत पूअर क्वालिटी के हैं. फिर भी इतना तो कहा जा सकता है कि पलड़ा बहुत नहीं तो थोड़ा जदयू-भाजपा का ही अभी झुका दिखता है.''
इनका कहना है कि सार्वजानिक हितों से जुड़े मुद्दों पर वोट देने वालों की तादाद इतनी कम नहीं होती कि उसे परिणाम के आकलन में नज़रअंदाज़ कर देने से कोई फ़र्क़ न पड़े.
शहर के चौक-चौराहे पर या ग्रामीण चौपालों में हो रही आम चर्चा का भी ऐसा कोई निष्कर्ष नहीं निकल रहा जो किसी दल या गठबंधन के पक्ष में हवा या लहर के स्पष्ट संकेत दे.
तो ज़ाहिर है कि कयास या अनुमान से आगे कोई स्पष्ट संभावना अभी बताई भी नहीं जा सकती क्योंकि दो दौर का जो मतदान बाक़ी है, वो पिछले चार चरणों के रुझान को झटका भी दे सकता HAI.
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